शहर के बीचोबीच से होकर गुजरने वाली छाड़ी नदी के किनारे के अतिक्रमण को हटाने व उसे गहरा कर पुराने स्वरूप में लौटाने की योजना अधर में लटक गई है। दिसंबर माह में नदी के किनारों की मापी का कार्य कर उसे गहरा करने का कार्य प्रारंभ किया गया था। लेकिन कोरोना की शुरुआत के बाद इस योजना पर काम बंद कर दिया गया। जिसके बाद नदी की सफाई के बाद उसे गंडक नदी से जोड़ने के अभियान पर ब्रेक लग गया। जिसके कारण इस साल भी बरसात के पूर्व नदी को गहरा कर उसे गंडक नदी से जोड़े जाने की योजना परवान चढ़ती नहीं दिख रही है।
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जिला मुख्यालय से होकर गुजरने वाली छाड़ी नदी में करीब ढाई दशक पूर्व तक सालों भर पानी रहता था। इसका कारण छाड़ी नदी व गंडक नदी का आपस में जुड़ना रहा। वर्ष 1998-99 में गंडक नदी के कारण आयी बाढ़ में जिला मुख्यालय भी इसकी चपेट में आ गया। जिसके बाद छाड़ी नदी व गंडक नदी को आपस में जोड़ने वाले मुहाना को हीरापाकड़ में बंद कर दिया। नदी का मुहाना बंद किए जाने के बाद छाड़ी नदी में पानी आना बंद हो गया। ऐसे में नदी के किनारों पर अतिक्रमण बढ़ाने का कार्य प्रारंभ हो गया। पिछले दो दशक की अवधि में शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण इलाके तक में अतिक्रमण के कारण इस नदी का स्वरूप पूरी तरह से बदल गया है। जिला मुख्यालय में नदी की दशा सबसे अधिक खराब है। इसी नदी में शहर का गंदा पानी गिरने तथा कचरा फेंके जाने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है।
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2001 में पहली बार बनी थी नदी की सफाई की योजना:
वर्ष 2001 में पहली बार इस नदी की सफाई की योजना बनाई गई थी। तब नदी की सफाई के साथ ही इसके किनारे पर पहुंच पथ बनाने व पौधरोपण की व्यवस्था करने का प्लान तत्कालीन जिलाधिकारी ने तैयार किया। लेकिन एक साल की सुगबुगाहट के बाद इस योजना पर विराम लग गया।
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दिसंबर माह में दिया गया था सफाई का निर्देश:
जिलाधिकारी अरशद अजीज ने दिसंबर माह में छाड़ी उर्फ गंगिया नदी का खुद मुआयना करने के बाद इसकी सफाई करने के साथ ही अतिक्रमण को हटाने का निर्देश जारी किया था। डीएम के आदेश के बाद बरौली व मांझा प्रखंड के अलावा सदर प्रखंड में भी नदी की जमीन की मापी का कार्य किया गया। कुछ स्थानों पर नदी की सफाई भी हुई। इसी बीच कोरोना का संकट प्रारंभ होने के बाद इस कार्य पर ब्रेक लग गया है।