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गोपालगंज : खतियान में दर्ज सभी कुआं का किया जाएगा जीर्णोद्धार

लगातार गिरते भू-जल स्तर के बाद सरकार को अब कुओं की याद आ गई है। सरकार ने तालाबों के साथ ही वैसे कुएं जो वर्ष 1917 में तैयार हुए खतियान में दर्ज हैं, उनका अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चलाने का निर्देश जारी किया है। इसके तहत प्रथम चरण में जिले के तीन प्रखंडों में ऐसे कुएं को चिन्हित करने का निर्देश दिया गया है। इन चिन्हित कुओं से जल्द ही अतिक्रमण हटाया जाएगा। जरुरत पड़ी को इस अभियान के दौरान कुएं की जमीन पर निर्मित किए गए मकान को भी ध्वस्त किया जाएगा।
 
जानकारी के अनुसार वर्ष 1917 में सर्वे हुआ था, तब कुएं की भी गणना की गई थी। इस गणना के अनुसार पूरे जिले में 12 हजार से अधिक छोटे-बड़े कुएं मौजूद थे। तब इन कुओं से निकले पानी को पीकर लोग अपनी प्यास बुझाते थे। खेतों की सिचाई का प्रमुख साधन में से एक कुआं भी था। समय से साथ व्यवस्था की मार कुएं पर पड़ने लगी। 1950-60 के बाद गांवों में स्थित कुओं की देखभाल धीरे-धीरे कम होने लगी और नतीजा अब कुआं का अस्तित्व मिटता जा रहा है। कुओं के संरक्षण की दिशा में सरकारी स्तर पर लगातार अनदेखी का नतीजा यह रहा कि इनकी स्थिति लगातार खराब होती चली गई। हालांकि करीब एक दशक पूर्व जब पानी की समस्या शुरू हुई तो तालाबों की स्थिति में सुधार की प्रशासनिक स्तर पर पहल की गई। मनरेगा से लेकर मत्स्य पालन के नाम पर गांवों में मौजूद तालाबों को दुरुस्त करने का कार्य प्रारंभ किया गया। लेकिन कुआं सरकारी योजनाओं में उपेक्षित ही रह गए। जिसका असर जल स्त्रोतों पर पड़ने लगा। अब सरकार ने कुओं को उनके पुराने स्वरूप में लौटाने की पहल की है।
 
परंपरागत जल स्त्रोत में प्रमुख हैं कुएं:
परंपरागत जल का प्रमुख स्त्रोत के रूप में जाने जाने वाले कुआं प्रमुख रहा है। जिले के तीन प्रखंड थावे, उचकागांव तथा विजयीपुर में भू-जल स्तर के नीचे चले जाने के बाद प्रथम चरण में इन तीनों प्रखंड में करीब सौ साल पूर्व खतियान में दर्ज कुओं की पहचान का कार्य प्रारंभ किया गया है। अबतक के अभियान में इन तीनों प्रखंड में 1400 से अधिक कुओं की पहचान की जा चुकी है। जो किसी न किसी रूप में अतिक्रमण के शिकार हैं। सर्वेक्षण में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि इनमें से करीब बीस प्रतिशत कुओं का वर्तमान में कोई अस्तित्व ही नहीं है। यानि इस जमीन पर लोगों ने मकान आदि का निर्माण करा दिया है।
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भविष्य के लिए खतरे का संकेत:
भू-गर्भ जल हर साल नीचे जाना भविष्य के लिए खतरे का संकेत के रूप में माना जा रहा है। बड़े बुजुर्ग भी इस बात को स्वीकार करते हैं। 90 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके रामविचार सिंह कहते हैं कि आज से दो दशक पूर्व तक भीषण गर्मी के मौसम में भी पोखर व पुराने कुएं नहीं सूखते थे। लेकिन आज तालाबों की गहराई बढ़ाने के बाद भी इसमें सालों भर पानी नहीं टिक पाता है। कुएं का भी पानी समाप्त हो गया है। यह सब मौसम की मार तथा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का असर है।
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नहीं हुए जल संरक्षण के प्रयास:
जल संरक्षण के दिशा में समुचित प्रयास नहीं किया गया है। तालाबों को बचाने के लिए उन्हें मनरेगा के तहत गहरा करने का कार्य चला तो जरूर, लेकिन इसके बावजूद तालाबों में पानी सालों भर नहीं ठहर पा रहा है। लेकिन इस तरह का कोई भी प्रयास कुएं के प्रति नहीं किया गया है। इसके अलावा जल संरक्षण के लिए सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा कोई भी प्रयास नहीं किया जा रहा है। ऐसे में वर्तमान समय में परंपरागत जल स्त्रोत को बचाने की इस मुहिम में उम्मीद है कि कुएं अपने पुराने स्वरूप में लौट सकेंगे।