देश में आजादी की अलख जगाने वाले महात्मा गांधी सितम्बर 1918 में बैकुंठपुर के गंधुआ गांव पहुंचे थे। बूढ़े- बुजुर्गो से सुने उस लम्हें को इस गांव के लोग आज तक अपने जेहन में रखे हुए हैं। बताते हैं कि 1918 में महात्मा गांधी ने तिरहुत के कमिश्नर एल.एफ मोर्शिद से मिलकर अपने चंपारण यात्रा का कार्यक्रम बनाया था। तब चंपारण में नीलहे किसानों पर अत्याचार का दौर चरम पर था। चंपारण यात्रा पूरी होने के बाद महात्मा गांधी को सारण के हरपुर गांव में एक सभा को संबोधित करना था। ऐसे में उनके आगमन की भनक गंधुआ गांव के श्यामसुन्दर जी को लग गई। गांधी जी के साथ सारण जिले के अमनौर थाना के अपहर गांव के वकील गोरखनाथ तथा सारण जिला परिषद के चेयरमैन मौलाना मजहरूल हक भी लारी में सवार होकर हरपुर जान गांव आ रहे थे। इसी बीच श्यामसुन्दर जी मजहरूल हक से मिले और उनसे बात कर गांधी जी को गंधुआ लाने के लिए तैयार किए। गांव तक आने के लिए तक सही रास्ता नहीं था। ऐसे में गांव के एक किलोमीटर दूर गांधी जी को लारी से उतारकर बैलगाड़ी पर बैठाया गया। गांव के कई लोग पुरानी यादों की कड़ियों को जोड़ते हुए बताते हैं कि गांधी जी ने कहा था कि ¨हसा मत कीजिए व सच्ची बात बोलिए। वे बताते हैं उस समय गांव में विद्यालय नहीं था। जब गांधी जी को इसका पता चला तो उन्होंने गांव में एक विद्यालय की स्थापना खुद अपने ही हाथों से किया। 1919 में मिट्टी की भीत पर विद्यालय बनकर तैयार हुआ। तब पांच-छह कोस से बच्चे यहां पढ़ने आते थे।
अंग्रेजों की आंख की किरकिरी थे गोरख राय:
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एसडीओ के कोर्ट में चल रही सुनवाई के कार्य में बाधा डालने के आरोप में स्वतंत्रता सेनानी गोरख बाबू को अंग्रेजों ने पकड़ कर डेढ़ साल की सजा सुनाई थी। मोतिहारी कैंप जेल मे सजा अवधि को काटने के बाद वे आंदोलन से लगातार जुड़े रहे। भारत की आजादी के बाद वे लगातार शिक्षा के विकास में लगे रहे तथा अथक परिश्रम के बाद गोपालगंज महाविद्यालय के कला संकाय भवन का निर्माण कराया।
सदर प्रखंड के कररिया गांव में मध्यम वर्ग के किसान परिवार में 1914 में जन्मे गोरख राय ने मैट्रिक की परीक्षा नगर के वीएम हाई स्कूल से पास की थी। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद से ही वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया। लगातार अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बनने के बाद उन्हें एसडीओ कोर्ट के कार्य में बाधा डालने के आरोप में गिरफ्तार कर कैंप जेल में डाल दिया गया। मुकदमे की सुनवाई के बाद उन्हें डेढ़ साल की सजा हुई। कारा से छूटने के बाद वे अपने बड़े भाई स्वतंत्रता सेनानी कमला राय के अधूरे कार्यो को पूरा करने में लग गए। शिक्षा के विकास में वे शुरू से ही लगे रहे। गोपालगंज महाविद्यालय में कला संकाय की स्थापना में उनकी भूमिका सराहनीय रही। 1962 के विस चुनाव में वे बरौली विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। 1968 में काशी में उन्होंने देह त्याग दिया।