एनीमिया मुक्त में राष्ट्रीय पोषण माह होगा सहयोगी
गर्भवती माताओं के लिए आयरन की 180 गोली का सेवन जरूरी
स्वास्थ्य संवाददाता गौतम की रिपोर्ट: जिले में 1 सितंबर से राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जा रहा है। इस दौरान प्रतिदिन जिला से लेकर सामुदायिक स्तर पर विभिन्न गतिविधियां आयोजित कर लोगों को पोषण पर जागरूक किया जा रहा है। जिले में बुधवार को सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर किशोर- किशोरियों को आयरन की गोली व बच्चों को आयरन की सिरप दी गयी।
जिला कार्यक्रम पदाधिकारी आईसीडीएस शम्स जावेद अंसारी ने बताया जिले को एनीमिया मुक्त करने में राष्ट्रीय पोषण माह सहयोगी साबित हो रहा है। एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के अंतर्गत 6-59 माह के शिशु, 5-9 वर्ष के बच्चे, 10-19 वर्ष के विद्यालय जाने वाले किशोर-किशोरियों प्रजनन उम्र की महिलाओं, गर्भवती और धात्री महिलाओं में एनीमिया के रोकथाम हेतु आईएफ़ए (आयरन फोलिक एसिड )का अनुपूरण किया जाना है । एनिमिया मुक्त भारत अभियान को सफल बनाने के लिए पोषण पर आम जागरूकता जरूरी होती है। गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के तीन महीने बाद आयरन की 180 गोली अगले छह माह तक खाने की सलाह दी जाती है। इसके लिए ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस पर गर्भवती महिलाओं को जागरूक किया जाता है।
सप्ताह के प्रत्येक बुधवार व शनिवार को दी जाती है दवा: साप्ताहिक आयरन फॉलिक एसिड अनुपूरण कार्यक्रम के तहत प्रत्येक बुधवार को किशोरों को आयरन की एक नीली गोली दी जाती है। एनिमिया मुक्त भारत अभियान के साथ विफ़्स एवं बच्चों को आयरन सिरप देने के अभियान को एक साथ जोड़ा गया है। प्रत्येक बुधवार और शनिवार को आंगनबाड़ी सेविका घर-घर जाकर 6 माह से 59 माह के बच्चों को आयरन का सिरप पिलाती हैं। एनीमिया की रोकथाम के लिए 6 वर्ष से 9 वर्ष के बच्चों को आयरन की गुलाबी टेबलेट दी जाती है एवं 11 वर्ष से 19 वर्ष के बच्चे को आयरन की नीली गोली दी जाती है।
क्या है एनिमिया: बच्चों के रक्त में 11 ग्राम से कम हेमोग्लोबिन और महिलाओं के रक्त में 12 ग्राम से कम हेमोग्लोबिन होने की स्थिति को एनिमिया या रक्ताल्पता की स्थिति माना जाता है।
क्या है आंकड़ा: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण 4 के अनुसार गोपालगंज जिले मे 6 से 59 माह के 62.8 प्रतिशत बच्चे, प्रजनन आयु वर्ग की 58 प्रतिशत महिलाएं एवं 51 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं । किशोरावस्था में खून की कमी के कारण मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है तथा कुपोषण की संभावना बढ़ जाती है| वही किशोरावस्था मे अगर सही पोषण न मिले तो दैनिक कार्य करने कि क्षमता घट जाती है और एकाग्रता मे भी कमी आती है ।