जून व जुलाई माह में बारिश नहीं होने से धान की फसल को बचाना किसानों के लिए मुश्किल हो गया है। खेतों में पड़ी मोटी दरारें किसानों के हौसले को लगातार पस्त करती जा रही है। आसमान से बारिश की बूंद नहीं टपकने से किसान लगातार निराश होते जा रहे हैं। बारिश की स्थिति नहीं बनने से किसानों अकाल की काली छाया को लेकर सशंकित हैं। आंकड़े गवाह हैं कि जुलाई माह में बदरा किसानों को धोखा दे रहे हैं। इस साल जून माह में 17 जुलाई तक मात्र 72 मिलीमीटर बारिश ले किसानों की चिंता को इस कदर बढ़ा दिया है कि अधिकांश किसानों को इस साल खरीफ फसल के रूप में धान के उत्पादन की उम्मीद तक छोड़ दिया है। अभी वर्तमान समय में खरीफ अभियान में धान की रोपनी का समय है। लेकिन तेज पूरवा हवा के बीच खेतों में धूल उड़ रही है। आंकड़ों की मानें तो पिछले पांच साल से सबसे खराब स्थिति इस साल बनी है। वैसे पूरे जिले में गत जून माह से ही बारिश एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस साल जून माह में पिछले पांच साल में सबसे कम बारिश का रिकार्ड बना तो जुलाई माह भी इस रिकार्ड से अबतक पीछे नहीं है। हालांकि मौसम विभाग अगले दो-तीन दिल में अच्छी बारिश की उम्मीद जताई है। लेकिन किसान बारिश की उम्मीद छोड़ चुके हैं। किसानों का कहना है कि धान के बिचड़े खेत में ही सूख जाएंगे, उसके बाद बारिश भी होती है तो उससे क्या फायदा। किसानों का कहना है कि वर्तमान खरीफ अभियान के तहत रोपे गए धान के खेत में चौड़ी दरारें पड़ गई हैं। सिंचाई के सरकारी संसाधन दम तोड़ चूके हैं। ऐसे में उनके समक्ष कई इलाकों में अभी बिचड़ा व रोपे गए धान को बचाने की चुनौती पैदा हो गई है। यह स्थिति कमोबेश जिले के सभी 14 प्रखंडों में है। हर किसी की नजर बारिश की ओर है। लेकिन तेज धूप के कारण किसानों की उम्मीदों को झटका लग रहा है। बारिश के आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल जून में मात्र 51.4 मिलीमीटर तथा जुलाई माह में भी अबतक मात्र 72.1 मिलीमीटर बारिश हुई है। जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट रूप से दिखने लगी है। मौसम विभाग ने भले ही जुलाई के दूसरे पखवारे तथा अगस्त माह में अच्छी बारिश की संभावना व्यक्त किया है। लेकिन अब तक बादलों के दगा देने से किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है।
निजी बोरिंग से भी नहीं निकल रहा पानी:
बारिश नहीं होने से कटेया में खेतों में लगे फसल अब सूखने लगे हैं। खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें उभर आई हैं। किसान बताते हैं कि भू जल स्तर गिरने से निजी बोरिंग से भी पानी निकलना बंद हो गया है। प्रखंड से गुजर रही नहरों से भी किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं मिला पा रहा है। नहरों से आंशिक सिंचाई का कार्य ही हो पा रहा है। प्रखंड क्षेत्र में लगाए गए आधा दर्जन सरकारी नलकूप भी बंद पड़े हैं। मौसम की मार के बीच सिंचाई की सरकारी व्यवस्था फेल होने से अब किसानों की उम्मीदों पर पानी फिरने लगा है।
अबतक मात्र 15 फीसद ही हुई है रोपनी:
कृषि विभाग के आंकड़ों की मानें तो जिले में 87 हजार हेक्टेयर में धान की खेती की जानी है। इसके विरुद्ध अबतक मात्र 15 फीसद ही रोपनी हो सकी है। बारिश नहीं होने से जिले में धान की रोपनी का काम ठप पड़ गया है। कृषि विभाग के अनुसार अगले दो-चार दिन में बारिश नहीं हुई तो धान की रोपनी का लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा।