तेजी से टूटते एवं बिखरते समाज में जहां लोग खुद तक सिमटते जा रहे हैं वहीं ऐसे लोग हैं जिन्होंने मानवता की लौ को जला रखी है। जिनकी बदौलत आज भी हम सेवा की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में एक हैं गोपालगंज के बड़ी बाजार निवासी नन्हू प्रसाद। व्यवसाई हैं। अपने कीमती वक्त से समय निकाल नन्हू पीड़ित मानवता की सेवा करते हैं। एक ओर जहां जीवन में रक्त देकर लोगों की जान बचाते हैं तो वहीं दूसरी ओर मरने के बाद वक्त देकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। अपनों को तो सभी कंधा देते हैं पर कम लोग ही ऐसे होते हैं जो उन्हें कंधा देते हैं जिनका कोई नहीं होता। उन्हें यह समाज लावारिस कहता है। बात अगर बगैर जीवन के मानव शरीर का हो तो और भी कठिन स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अधिकतर ऐसे मामलों में यही देखने को मिलता है कि शवों को पांच गज कफन भी नसीब नहीं हो पाता है। जैसे-तैसे लावारिस शवों को ठिकाने लगा दिया जाता है। लेकिन गोपालगंज में लावारिस शवों को भी वारिस मिल गया है। शहर के बड़ी बाजार निवासी व्यवसायी नन्हू प्रसाद लावारिस शवों का वारिस बन मानवता की लौ जला रहे हैं। ये अब तक 30 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं। शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए ये खुद कफन से लेकर लकड़ी तक का इंतजाम करते हैं। इसके साथ ही जरुरतमंद मरीजों के लिए रक्तदान करने में भी ये आगे रहते हैं। अब तक रक्तदान कर नन्हू प्रसाद 21 लोगों की जान बचा चुके हैं।
30 लावारिस शवों का कर चुके अंतिम संस्कार
बात पांच दिन पहले की ही है। सदर अस्पताल में भर्ती एक अज्ञात मरीज की मौत हो गई थी। समस्या यह उठी खड़ी हुई कि इस अज्ञात मृतक का अंतिम संस्कार कौन कराए? तभी इसकी जानकारी बड़ी बाजार निवासी गल्ला व्यवसायी 53 वर्षीय नन्हू प्रसाद को मिली। सदर अस्पताल पहुंच कर इन्होंने पुलिस से इस अज्ञात मृतक का अंतिम संस्कार करने की इजाजत मांगी। इजाजत मिलने के बाद ये दो चौकीदारों के साथ शव को लेकर शमशान घाट पहुंचे तथा खुद कफन और लकड़ी खरीद कर इस अज्ञात मृतक का पूरे विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया। अब तक 30 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुके नन्हू प्रसाद कहते हैं कि जब तक सांस है और शरीर सक्षम है तब तक वे लावारिस शवों के वारिस बनने के अपने मुहिम को जारी रखेंगे।
नेपाल में मिली प्रेरणा, तब से जारी है मुहिम
लावारिस शवों के वारिस बनकर मानवता की लौ जला रहे बड़ी बाजार निवासी नन्हू प्रसाद को अज्ञात शवों को कंधा देने की प्रेरणा नेपाल में मिली थी। साल 1985 में नन्हू प्रसाद किसी काम से नेपाल गए थे। वे दो दिन तक अपने एक जान पहचान के घर रुके थे। इस बीच एक अज्ञात मजदूर की मौत हो गई थी। नन्हू प्रसाद बताते हैं कि इस अज्ञात मजदूर के शव का अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। तब उन्होंने खुद इस अज्ञात मजदूर के शव का अंतिम संस्कार करने का फैसला दिया। तब इन्हें जब भी किसी अज्ञात व्यक्ति की मौत की सूचना मिलती है वे वहां उसका अंतिम संस्कार करने के लिए पहुंच जाते हैं।
रक्तदान कर बचा चुके हैं कई लोगों की जान
लावारिस शवों के वारिस बने नन्हू प्रसाद रक्तदान करने में भी आगे रहते हैं। अब तक रक्तदान कर ये 21 मरीजों की जान बचा चुके हैं। नन्हू प्रसद बताते हैं कि उनकी इस मुहिम में उनके परिवार के सदस्यों का भी पूरा सहयोग मिलता है। उनके साथ ही जरुरत पड़ने पर इनके भाई, पुत्र तथा परिवार के अन्य सदस्य भी इस सामाजिक कार्य में शामिल होते हैं।
युवाओं का भी मिलने लगा है साथ
मानवता की लौ जला रहे नन्हू प्रसाद को अब युवाओं का भी साथ मिलने लगा है। वे बताते हैं कि पहले घर के सदस्य इस काम में मदद करते थे। अब उनके साथ-साथ लावारिस शव को कंधा देने के लिए युवा भी आगे आने लगे हैं।
क्या कहते हैं सीएस
नन्हू प्रसाद जैसे लोग समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। अज्ञात मृतकों के शवों को न सिर्फ कंधा दे रहे हैं बल्कि अंतिम संस्कार करने के लिए भी हमेशा तत्पर रहते हैं। सामाजिक कार्य में लगे नन्हू प्रसाद जैसे लोगों को स्वास्थ्य विभाग हर संभव सहयोग देगा।
डॉ. एके चौधरी
सिविल सर्जन, गोपालगंज
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