यहां पानी का धंधा तेजी से परवान चढ़ता रहा है। शुद्ध पेयजल के नाम पर पानी का कारोबार बढ़ता जा रहा है। बिना लाइसेंस के जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड मुख्यालयों में आरओ वॉटर प्लांट लग गए हैं। इन प्लाटों से जार में दुकानों से लेकर निजी प्रतिष्ठानों में पानी पहुंचाया जा रहा है। लेकिन इस पानी की शुद्धता जांचने परखने वाला कोई नहीं है। स्वच्छ पानी के नाम पर यह कारोबार जिस गति से बढ़ता जा रहा है, उसी के अनुपात में पानी बर्बाद हो रहा है। जिससे भू गर्भ जलस्तर पर भी असर पड़ने लगा है। गर्मी बढ़ने के साथ ही चापाकल से लेकर घरों में लगे पंप जवाब देने लगे हैं। इसके बाद भी बिना लाइसेंस के चल रहे शुद्ध पानी के इस कारोबार के प्रति नगर परिषद से लेकर नगर पंचायतें उदासीन बनी हुई हैं।
पिछले कुछ सालों में पानी की शुद्धता को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है। पानी जनित बीमारियों के मामले हर साल बढ़ते जाने के कारण शुद्ध पानी की मांग भी बढ़ने लगी है। अपने अपने घरों में लोग आरओ लगा रहे हैं। होटलों, रेस्टोरेंट तथा दुकानों व निजी प्रतिष्ठानों में जार से सप्लाई की जाने वाली शुद्ध पानी की मांग बढ़ी है। इसी के साथ ही पानी का कारोबार भी बढ़ता जा रहा है। हालांकि पानी का कारोबार बढ़ने की कीमत भी लोगों को चुकानी पड़ रही है। एक तो लोग पानी के लिए पैसा चुका रहे हैं। ऊपर से जार में सप्लाई किए जाने वाले पानी की शुद्धता को जांचने परखने वाला कोई नहीं है।
कारोबार बढ़ने के साथ बढ़ रही पानी की बर्बादी:
आरओ वॉटर प्लांट लगाकर पानी की सप्लाई जिस तेज से पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, उसकी के अनुपात में पानी की बर्बादी भी बढ़ती जा रही है। इंजीनियर एके तिवारी बताते हैं कि आरओ प्लांट में पानी शुद्ध करने के लिए ऑस्मोसिस प्रॉसेस अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में सौ लीटर पानी में सिर्फ 40 लीटर पानी की शुद्ध होता है। जबकि शेष 60 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है। अगर शहर में प्रतिदिन 50 हजार लीटर पानी की सप्लाई की जाती है तो इतना ही पानी बर्बाद हो जाता है। जिसका असर भू गर्भ जलस्तर पर पड़ रहा है। वे कहते हैं कि आरओ प्लांट में पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है। जो पानी बर्बाद हो रहा है उसे किसी जगह इकट्ठा कर री-साइकिल किया जा सकता है। री साइकिल से पहली बार 24 प्रतिशत तथा दूसरी बार 14 प्रतिशत पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है। लेकिन री साइकिल की बात कौन कहे, यहां तो बिना लाइसेंस के ही आरओ वॉटर प्लांट चल रहे हैं।
बिना लाइसेंस के चल रहे आरओ प्लांट:
जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड मुख्यालयों में बिना लाइसेंस के ही अधिकांश आरओ वॉटर प्लांट चल रहे हैं। लाइसेंस नहीं लगने के कारण इन प्लांटों में पानी की शुद्धता की जांच परख भी नहीं होती है। गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि शहर में चार तथा प्रखंड मुख्यालय को मिला कर जिले में करीब दस आरओ वॉटर प्लांट हैं। पिछले तीन चार साल के अंदर हर साल आरओ वॉटर प्लांट की संख्या बढ़ती जा रही है। पानी का कारोबार भी बढ़ रहा है। हद तो यह कि न तो नगर परिषद गोपालगंज को और ना ही नगर पंचायतों को उनके क्षेत्र में कितने आरओ वॉटर प्लांट लगाए गए हैं इनकी जानकारी भी नहीं है।
“नगर परिषद क्षेत्र में एक-दो को छोड़कर अन्य किसी ने भी आरओ वॉटर प्लांट के लिए ट्रेड लाइसेंस नहीं लिया है। बिना लाइसेंस के चल रहे आरओ वॉटर प्लांट का पता लगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह भी जांच जाएगा कि वहां शुद्ध किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता मानक के अनुसार है कि नहीं।”
हरेंद्र कुमार चौधरी, चेयरमैन, नगर परिषद गोपालगंज