बात कुचायकोट प्रखंड के पट्टी चक्कर गोपी में चेरो वंश के समय खुदवाए गए ऐतिहासिक तालाब से शुरू करते हैं। दस एकड़ के इस ऐतिहासिक तालाब के पानी से कभी लोगों लोगों की प्यास बुझती थी। आसपास के कई गांवों के खेतों में लगी फसलों को इस तालाब के पानी से सिचाई होती थी। लेकिन समय के साथ इस तालाब की उपेक्षा होती चली गई। तालाब के चारों किनारों पर धीरे-धीरे अतिक्रमण किया जाने लगा। जिससे इस तालाब का रकबा पांच एकड़ से भी कम रकबा में सिमट कर रह गया है। अब यह तालाब अपने अस्तित्व बचाने के लिए जुझ रहा है। कुछ ऐसी ही स्थिति चेरो वंश के समय खुदवाए गए इस प्रखंड के
बनकटा, सोनहुला चन्द्रभान तथा ढेबवा में स्थित तालाबों की भी है। अतिक्रमण के कारण इन तालाबों का रकबा भी सिमटते जा रहा है। हालांकि अब प्रशासन ने तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त कराने की पहल की है। सरकारी तालाबों को चिन्हित किया जा रहा है। जिन सरकारी जल निकायों पर अतिक्रमण किया गया है, उसे अतिक्रमण से मुक्त कराने की दिशा में भी प्रशासनिक स्तर पर पहल की गई है।
कभी ढेबवा तालाब में साल भर रहा था पानी:
कुचायकोट प्रखंड के ढेबवा गांव स्थित ऐतिहासिक तालाब में कभी साल भर पानी रहता था। ढेबवा गांव के मध्य स्थित यह तालाब कभी जल संरक्षण का बेहतरीन नमूना था। पूरे गांव के बरसात और घरों से निकलने वाला पानी इस तालाब में एकत्रित होता है। इसके पानी से कभी ग्रामीण खेतों की सिचाई करते थे। पशु पक्षियों की प्यास इस तालाब के पानी से बुझती थी। लेकिन अब यह तालाब अतिक्रमण का शिकार हो सिकुड़ता जा रहा है। बचा हुए तालाब का हिस्सा सिल्ट और झाड़ झंखाड़ से भरा हुआ है। आसपास लोगों ने इसका अतिक्रमण कर इस पर निर्माण भी शुरू कर दिया है। इस अतिक्रमण से पोखरे को मुक्त कराने के लिए ग्रामीण पिछले एक साल से सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
बंगरा गांव के तालाब की दशा भी बदहाल:
कुचायकोट प्रखंड के बंगरा गांव में पारस तिवारी के घर के पश्चिम लगभग दो बीघे में कभी तालाब था। यह तालाब कभी साल भर पानी से लबालब रहता था। अब यह तालाब अतिक्रमण का शिकार होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ।इस पोखरे के अस्तित्व को बचाने के लिए ग्रामीण कानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं।
कभी चार एकड़ में फैला था भिडा गांव का पोखरा:
एनएच 28 के किनारे पोखर भिडा गांव के पास लगभग चार एकड़ में फैला तालाब कभी आसपास के क्षेत्रों का मुख्य जल स्त्रोत था । इस तालाब में साल भर लबालब पानी भरे रहने से आसपास के खेतों की सिचाई होती थी । आसपास के गांव के बच्चे यहां तैराकी के लिए सुबह जमा होते थे। लेकिन अब यह तालाब अतिक्रमण का शिकार हो गया है। पोखरे पर तमाम लोग अपने अपने मालिकाना हक का दावा करते हुए इसकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।
प्रखंड के बलथरी गांव से दक्षिण दिशा में कुचायकोट जाने वाली सड़क के किनारे अमतही पोखरी के नाम से विख्यात पोखरा कभी पानी से लबालब भरा रहता था । आसपास के क्षेत्रों में यह तालाब किसी जीवनदायिनी तालाब की रूप में विख्यात था। लेकिन धीरे-धीरे आसपास के लोगों द्वारा किए गए अवैध कब्जे और अतिक्रमण से अब यह तालाब अपना अस्तित्व खोता जा रहा है । डेढ़ एकड रकबे वाला यह तालाब अब दो कट्ठे में सिमट कर रह गया है।
कुचायकोट प्रखंड में हैं 91 सरकारी पोखरे:
कुचायकोट प्रखंड कुल 262 सरकारी जल निकाय चिन्हित किए गए हैं। जिसमें 91 पोखरा, 20 नहर, 21 पईन, 64 नाला, 33 नदी व अन्य जलस्त्रोत 33 हैं। इनमें से अधिकांश अतिक्रमण के शिकार हैं।
कुचायकोट प्रखंड के सभी जल निकायों का सर्वे कराया जा रहा है ।सर्वे के बाद जिन जल निकायों पर अवैध कब्जा या अतिक्रमण किया गया है, उन्हें विशेष अभियान चलाकर अतिक्रमण मुक्त कराने की करवाई की जाएगी।
संजीव कुमार कॉपर, प्रभारी बीडीओ कुचायकोट