पेट्रोल पंप व कोल्ड स्टोरेज व्यवसायी रामाश्रय सिंह कुशवाहा की हत्या के 30 घंटे बाद भी पुलिस बाइक सवार हथियारबंद अपराधियों का सुराग नहीं लगा सकी है। घटना के बाद कांड के अनुसंधान में जुटी पुलिस अभी इसी बात में उलझी है कि घटना को अंजाम देने के बाद अपराधी किस दिशा में भागने में सफल हुए। उधर घटना के तीस घंटे बाद भी हत्याकांड में संलिप्त अपराधियों की पहचान नहीं होने के कारण व्यवसायी के परिजन तथा बाजार के लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
भोरे थाना क्षेत्र के भोरे गांव के निवासी व्यवसायी रामाश्रय सिंह कुशवाहा के गांव के लोगों की मानें तो वे काफी मिलनसार व्यक्ति थे। भले ही व्यवसायी की हत्या की घटना को अंजाम देने वाले आरोपियों की पुलिस पहचान करने का दावा कर रही है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। हत्या के 24 घंटे बाद भी इस मामले में पुलिस प्राथमिकी तक दर्ज कर सकी थी। पुलिस के अनुसंधान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि घटना को अंजाम देने के बाद अपराधी किस ओर भागे, यह बात पुलिस के लिए अब भी रहस्य ही है। गांव के लोगों की मानें तो भोरे थाने की पुलिस अगर सक्रिय रहती तो दिनदहाड़े बाजार के समीप बड़ी घटना नहीं होती।
मॉल की जमीन पर चल रहा था विवाद:
भोरे थाना क्षेत्र के भोरे बाजार में व्यवसायी रामाश्रय सिंह कुशवाहा का मॉल भी बन कर तैयार हो रहा है। पुलिस सूत्रों की माने तो मॉल की जमीन पर पूर्व से कुछ लोगों से विवाद चल रहा था। लेकिन रामाश्रय सिंह उसपर अपना मॉल बनाने का कार्य लगभग पूर्ण कर चुके थे। लेकिन हत्या के कारणों के बारे में कुछ भी बताने से पुलिस अब भी इन्कार कर रही है। जबकि भोरे बाजार तथा आसपास के लोगों की माने तो रामाश्रय सिंह कुशवाहा की हत्या के पीछे भूमि का विवाद भी एक बड़ा कारण हो सकता है। लेकिन पुलिस की जांच के बाद ही हत्या के कारणों का खुलासा हो पाएगा।
मर्डर किसने किया अभी पता नहीं. लेकिन कुशवाहा की दुश्मनी किससे थी. आइए एक छोटी सी कहानी सुनाते हैं.
नयागांव तुलसिया के संतीश पांडे नए नए उभरे हुए थे. दबदबा शुरू हो गया था. एक बार पुलिस के एनकाउंटर में भोरे में ही घेर लिए गए. तब वहां के बडे सुरमा थे विद्या खांव. यह बात गौरतलब है कि भारे में खांव सरनेम लिखने वाले भूमिहार समाज के लोग हैं. विद्या खांव ने अपने समाज के लोगों को लेकर सतीश पांडे को बचाया था. इस वजह से वे सतीश पांडे के खास हो गए थे. खांव साहब के परिवार में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अपनी एक जमीन एक गोड समाज के व्यक्ति को बेच दिया. बाद में गोंड समाज के उस व्यक्ति ने खांव साहब से खरीदी अपनी वह जमीन कुशवाहा के हाथों बेच दी. उसी जमीन पर तो मल्टीप्लेक्स बन रहा था. मतलब समाज के एक दबदबे वाले परिवार की जमीन ट्रांसफर होते होते एक नए नए प्रभावशाली होते कुशवाहा के हाथों में आई. वह मल्टीप्लेक्स बनवा लेते तो क्या होता. कितने लोगों को रोजगार का अवसर मिलता. रोजगार का अवसर उपलब्ध कराना एक पक्ष है, लेकिन एक दूसरी सच्चाई यह भी है कि समाज में पिछडा कहे जाने वाले रामाश्रय कुशवाहा अभिजात्य जाति से भले ही सामाजिक रूप से मजबूत नहीं हो रहे हैं लेकिन आर्थिक रूप में मजबूत होने की राह पर थे. यदि कोई पिछडा ऐसा करता है तो सबसे ज्यादा किसकी आंखों में खटकता है. आप को अनुमान लगाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए!