आतिशबाजी के दौरान बरतें सावधानी, पास में रखें पानी
मुमकिन हो तो बिना पटाखे के यह त्योहार मनाएं। अपने उत्साह का जरा सा सलीका बदलने से अगर बच्चों को सांस लेने लायक बेहतर हवा मिल सकती है तो यह सौदा बहुत महंगा नहीं है। वह खुशी ही क्या जो बच्चों की आंखों में चुभन भर दे। यह दीवाली उनकी खुशी के नाम।
प्रकाश और प्रसन्नता का त्योहार दीपावली पर बेतहासा आतिशबाजी के दौरान लोग चिंगारी से जख्मी हो जाते हैं। साथ ही आतिशबाजी के जहरीले धुएं और धमाकों से आंखों में जलन, दिल में दर्द, घबराहट और दम घुटने जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए गोपालगंज समाचार ने चिकित्सकों की राय ली। उनका एक स्वर में कहना था कि बच्चे और बुजुर्ग दोनों पटाखे से दूर रहे।
पटाखों की आवाज, धुआ और चिंगारी तीनों हानिकारक हैं। पटाखे चलाते वक्त तीन फीट की दूरी से इसमें आग लगाए। अगर हाथ जल जाए तो इसे ठंडे पानी से देर तक धोएं। साथ ही सिल्वर सल्फा डायजीन का मलहम का लेप लगाए। इसके बाद चिकित्सक के पास जाएं।
पटाखों की आवाज से दिल के मरीजों को खतरा
हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक से ग्रस्त लोगो को पटाखों की जबर्दस्त ध्वनि सुनने से दिल पर जोर पड़ता है। इससे हार्ट रेट बढ़ सकती है। इसलिए हदय रोगियों को दूर से ही धमाकेदार आतिशबाजी को देखना चाहिए।
पटाखों से सावधानियां और बचाव
– आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानी से चलाएं।
– धातु या शीशे पर रखकर पटाखे न जलाएं।
– ज्वलनशील चीजों के पास पटाखे न जलाएं।
त्वचा संबंधित कुछ विशेष उपाय
– ढीले-ढाले और सिन्थेटिक कपड़ों के स्थान पर चुस्त और मोटे-सूती कपड़े पहने।
– बच्चों को पटाखों से दूर रखें और हमेशा उन पर नजर रखें।
– पटाखे जेब में न रखे क्योकि ये बिना जलाये भी फट सकते हैं।
– जली हुई जगह पर से तुरंत कपड़ा हटायें।
– जली हुई जगह पर ठंडा पानी डालें।
– जले स्थान पर मक्खन, चिकनाई, टेल्कम पाउडर या अन्य कोई चीज न लगाएं।
आंखों का करें बचाव
पटाखा आंख में लगने पर आंख को रगड़ना या मलना नहीं चाहिए, साथ ही आंख में धसी चीज को निकालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। आंख जल जाने पर अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं फिर जली आंख को पानी से दस मिनट तक धोएं और जल्द ही डाक्टर को दिखाएं। आतिशबाजी की रोशनी की तरफ सीधे न देंखे, हो सके तो प्रोटेक्टिव ग्लासेज पहनकर पटाखे चलाएं।
सांस के रोगियों को होती है परेशानी
आतिशबाजी से निकले सूक्ष्म पदार्थ आसानी से फेफड़ों में घुस कर एलर्जिक रिएक्सन चालू कर देते हैं। सांस के रोगियों के श्वसन मार्ग की सूजन बढ़ा देते है जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। उन्हें दमा का दौरा पड़ सकता है। सांस के रोगी जहां तक हो घर के अन्दर रहें, पानी और पेय पदार्थो का भरपूर सेवन करें, तथा भाप लें। जहां वायु में प्रदूषकों का घनत्व ज्यादा हो वहां मास्क का प्रयोग करें।