ये आंकड़े फरवरी महीने के हैं। कृषि विभाग ने भू-जलस्तर स्तर की जांच किया था तो छह से सात फीट भू-जल स्तर में गिरावट दर्ज की गई थी। अब गर्मी का महीना है। गर्मी बढ़ने के साथ ही भू-जलस्तर पांच से आठ फीट और नीचे चला गया है। गर्मी बढ़ने के साथ ही पेयजल संकट भी सामने आने लगा है। ग्रामीण इलाकों में चापाकल जवाब देने लगे है। यह स्थिति पिछले कई साल से गर्मी के मौसम में उत्पन्न होते आ रही है। सात नदियों के गोपालगंज जिले में गिरता भू-जल स्तर चिता बढ़ा रहा है।
जिले में गंडक नदी सहित सात नदियां हैं। कुछ नदियां गंडक नदी के पानी पर निर्भर है तो वहीं विजयीपुर से गुजर रही खनुआ नदी यूपी से होकर जिले में प्रवेश करती है। सात नदियों के इस जिले में कभी पानी 15 फीट पर ही मिल जाता था। अब पानी का लेयर गिर कर 20 फीट पहुंच गया है। शहरी क्षेत्र में कुछ साल पहले 20 फीट पर पानी मिलत था। अब 40 फीट पर पानी निकलता है। गर्मी बढ़ने के साथ भू-जल स्तर और नीचे गिरता जा रहा है। भू-जल का स्तर गिरने के साथ ही प्रथम तथा द्वितीय लेयर में आयरन की मात्रा भी बढ़ती जा रही है। जिला जल जांच प्रयोगशाला के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में प्रथम तथा द्वितीय लेयर का पानी 40 फीट नीचे पहुंच गया है। वहीं शहरी क्षेत्र में प्रथम व द्वितीय लेयर का पानी 80 फीट नीचे चला गया है। इन दोनों लेयर के पानी में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण यह पीने लायक नहीं है। भू जलस्तर गिरने से अब शहरी क्षेत्र में 180 फीट तथा ग्रामीण इलाके में पीने योग्य पानी 120 फीट पर मिल रहा है। गिरते भू-जल स्तर को देखते हुए अब ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी चापाकल 120 फीट तथा शहरी इलाके में 180 फीट पर पास किया जा रहा है। भू-जल की निर्भरता कम करने के लिए नल जल योजना से हर घर में शुद्ध पेयजल पहुंचाने की दिशा में काम चल रहा है। इस संबंध में पूछे जाने पर पीएचइडी विभाग के कार्यपालक अभियंता विपुल कुमार नंदन कहते हैं कि गोपालगंज में पानी का संकट नहीं है। यह जिला बाढ़ ग्रस्त है। जिससे पानी का लेयर बना रहता है। यहां 14.80 फीट पर पानी मिल जाता है। हालांकि प्रथम तथा द्वितीय लेयर में पानी में आयरन की अधिक मात्रा को देखते हुए ग्रामीण इलाके में 120 फीट पर चापाकल की स्वीकृति दी जाती है।