होली के पर्व को देखते हुए अब लोगों का रुख बाजारों की ओर होने लगा है। पर्व को देखते हुए लोग सामान की खरीदारी में लग गए हैं। इस पर्व के दौरान मिठाई की दुकानों पर भी भीड़ उमड़ती है तथा लोगों का उत्साह मिठाइयों के प्रति भी दिखता है। लेकिन त्योहारों के मौके पर मिलावटी मिठाइयों का कारोबार होने की संभावना को देखते हुए प्रत्येक व्यक्ति को सचेत रहने की भी जरुरत है। ऐसे में मिठाइयों की खरीद करते समय दुकानों की चमक दमक पर कतई न जाएं तथा सोच समझकर ही मिठाइयों को खरीदें। अगर मिठाइयों को परखने में चूक गए तो मिलवाटी मिठाइयां आपके सेहत पर भारी पड़ सकती है।
होली के मौके पर मिठाइयों की मांग अधिक बढ़ जाती है। मिठाई बेचने वाले कारोबारी भी इस मौके को अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहते। वे मुनाफाखोरी से लेकर मिलावट तक का काम करते हैं। बाजार में बिक रही मिठाइयों में खोया से लेकर मेवा व घी भी घटिया व नकली हो सकती हैं। विशेष तौर पर पर्व त्योहार के मौके पर इसके कारोबारी अपने कारोबार को और आगे बढ़ाने में जुट जाते हैं। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की मानें तो हाल के दिनों में दूध के दाम और त्योहारों में मिठाइयों की मांग बढ़ जाती है। ऐसे में शुद्ध मिठाइयों के मिलने की संभावनाओं पर भी सवाल उठने लगते हैं। मौजूद समय में दूध की कीमत 42 से 46 रुपये प्रति लीटर है। एक लीटर दूध में 180 से 200 ग्राम तक खोया निकल पाता है। इस प्रकार एक किलोग्राम खोया की कीमत ही 200 रुपये आती है। ऐसे में खोया की मिठाई की कीमत कम है तो उसमें मिलावट की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
शुद्ध खोया की क्या है पहचान
गोपालगंज : खोये को हथेली पर लेकर रगड़ने पर अपेक्षाकृत अधिक चिकनाई नहीं मिलती है तो मिठाई की शुद्धता की कोई गारंटी नहीं है। बढि़या खोया खाने में थोड़ा खट्टा भी होता है।
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लड्डू में भी होती है मिलावट
गोपालगंज : होली के मौके पर लड्डू व बूंदी की मांग बढ़ जाती है। इस त्योहार के लिए लड्डू को भी उपयुक्त मिठाई माना जाता है। लेकिन इसमें भी मिलावट किया जाता है। लड्डू बनाने वाले कारिगर खेसारी व मैदा की भी मिलावट करते हैं। इतना ही नहीं रिफाइन व घी के बदले घटिया तेल का प्रयोग कर इसमें भी मिलावट की जाती है।
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किसी भी पर्व के मौके पर घर में बनाई जाने वाले मिठाइयों का प्रयोग से बेहतर है। घटिया किस्म की मिठाइयों को खाने से कैंसर, हृदय रोग तथा नस जनित रोग के अलावा एसिडिटी जैसी बीमारियों का खतरा रहता है।
डॉ. सुनील कुमार रंजन