जब मेढ़ की खेत चरने लगे तो किस पर एतबार किया जाए। जिसके जिम्मे वाहनों के प्रदूषण की जांच की जिम्मेदारी हो और वहीं अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ ले, तो किसी अन्य से क्या उम्मीद की जाए। प्रदूषण जांच के लिए लगाई गई मशीनें सीमित इलाकों तक ही सिमटी हुई है। और यहां विभागीय स्तर पर प्रदूषण जांच के नाम पर केवल खानापूर्ती की जा रही है। जांच की व्यवस्था फेल हो जाने से जिले में वाहन मालिकों की चांदी कट रही है। खड़क पर खटारा वाहन वातावरण में जहर फैला रहे हैं।
शहर के वातावरण को प्रदूषित करने में वाहनों की भूमिका काफी अहम है। वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों को बीमार करने में सहायक बना हुआ है। इन वाहनों से शहर कितना प्रदूषित हो रहा है, इसका फिक्र प्रदूषण विभाग से लेकर परिवहन विभाग तक को नहीं के बराबर है। केवल कागजी कार्रवाई करके लोगों को सचेत करने की जिम्मेदारी निभा रहे परिवहन विभाग भी अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह से मुंह मोड़ चुका है। नतीजतन शहर में दमा और खांसी के मरीजों की संख्या में भी दिनोंदिन इजाफा होता जा रहा है। ऐसा तब है जबकि मोटर व्हैकिल एक्ट की धारा 115(2) के अनुसार हर छह महीने पर प्रदूषण जांच कराना अनिवार्य है। वाहनों के प्रदूषण जांच नहीं कराने पर एक हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान भी एक्ट में किया गया है। बावजूद इसके जांच की पूरी व्यवस्था ही यहां लचर दिखती है।
शो पीस बने प्रदूषण जांच केंद्र:
वैसे तो यहां पूरे जिले में बाइक से लेकर बड़े वाहनों तक की संख्या करीब एक लाख है। जबकि विभागीय आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक साल आठ से दस हजार वाहनों का ही प्रदूषण जांच किया जाता है। प्रदूषण जांच के कम आंकड़े विभाग के दावे की कलई खोलने के लिए काफी है। इन प्रदूषण केंद्रों पर नाम मात्र के ही वाहन जांच के लिए पहुंचते हैं। जिससे जिला मुख्यालय में स्थित जांच केंद्र सहित सभी जांच केंद्र शो पीस के ही साबित हो रहे हैं। गत मार्च माह के आंकड़े बताते हैं कि शहर के प्रदूषण जांच केंद्र पर मात्र आठ सौ वाहनों की ही जांच हुई। हद तो यह कि इस बीच महज एक दर्जन छोटे वाहन प्रदूषण जांच के लिए यहां पहुंच सके। हद तो यह कि इन आंकड़ों के बावजूद जिले में प्रदूषण की जांच के लिए कभी भी बड़ा अभियान नहीं चला और ना ही एक साथ अधिक वाहनों से जुर्माना ही वसूला गया।
डीजल वाहनों से फैलता है अधिक प्रदूषण:
विशेषज्ञों की मानें तो पेट्रोल वाहनों की अपेक्षा डीजल वाहनों से अधिक प्रदूषण फैलता है। क्योंकि इन वाहनों से निकलने वाले धुएं में कार्बन मोनो आक्सइड व हाइड्रो कार्बन की मात्रा अधिक होती है। यह कार्बन सांस के सहारे लोगों के फेफड़ों में जाता है तथा आंखों में जलन पैदा करता है।
हरेक वाहन के लिए अलग शुल्क निर्धारित:
विभागीय स्तर पर वाहनों के प्रदूषण जांच के लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित है। सबसे कम शुल्क दोपहिया वाहनों की जांच के लिए निर्धारित किया गया है। इसी प्रकार तीन पहिया, चारपहिया, तथा मध्यम मोटर यान तथा भारी मोटर यान के लिए भी शुल्क निर्धारित किया गया है।
कितने वाहनों का हुआ निबंधन:
आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक साल में सबसे अधिक दोपहिया वाहन का निबंधन हुआ। वर्ष 2018 में 3092 बाइक, 1397 चारपहिया, 503 ऑटो, 329 ट्रक, 56 बस तथा 1100 अन्य वाहनों का निबंधन हुआ।
कहते हैं अधिकारी:
पूरे जिले में वाहनों के प्रदूषण की जांच की जाती है। जिले में जांच के लिए केंद्रों की स्थापना भी की गई है। अलावा इसके सभी पेट्रोल पंप पर प्रदूषण जांच केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। ताकि प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की पहचान की जा सके।
कुमार विवेक
जिला मोटर यान निरीक्षक