गंडक नदी के कटाव से विस्थापित हुए परिवारों के लोगों के दिन इस उम्मीद में कट रही है कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था होगी। लेकिन उनकी यह उम्मीद कब पूरी होगी इस बात की गारंटी नजर नहीं आती। लंबे समय से विस्थापित परिवारों के लोग पुनर्वास की राह देख रहे हैं। इनकी उम्मीदों पर सरकार व जिला प्रशासन खरा नहीं उतर सका है। हर बार बाढ़ आने पर कटाव पीड़ित परिवारों की याद शासन को आती तो जरूर है, लेकिन इसके साथ ही इनकी पीड़ा को प्रशासनिक स्तर पर भूला दिया जाता है। ऐसे में वर्षो से विस्थापन की राह देख रहे पीड़ित परिवारों के लोग इस उम्मीद में जी रहे हैं कि उन्हें सरकार पीड़ा से मुक्ति दिलाने की दिशा में कार्य करेगी।
वर्ष 2001 में जिले में आई भीषण बाढ़ में सैकड़ों परिवार पूरी तरह से तबाह हो गए थे। त्रासदी का आलम यह था कि सैकड़ों परिवारों के लोगों ने तटबंध व सरकारी जमीनों पर अपना आश्रय बनाया। आज भी इन परिवारों के लोग तटबंध व नहर की पटरियों पर झोंपड़ी बनाकर अपना व परिवार के लोगों का गुजारा कर रहे हैं। तब भीषण बाढ़ आने के समय बाढ़ व कटाव पीड़ितों को रहने के लिए तीन-तीन डिसमिल जमीन उपलब्ध कराने की घोषणा की गई थी। आज इस घोषणा को करीब 16 साल की लंबी अवधि बीतने के बाद भी कटाव पीड़ित तटबंध व नहर की पटरी पर बस जी रहे हैं। उनकी सुध लेने की जरूरत न तो सरकार ने समझी और ना ही जिला प्रशासन ने।
हरेक साल बेघर होते हैं सैकड़ों परिवार:
गंडक नदी की कटाव के दंश से प्रति वर्ष सैकड़ों परिवार के लोग बेघर होते हैं। प्रत्येक साल होने वाला कटाव इसका प्रमुख कारण है। इस साल भी गंडक नदी के कटाव के कारण खाप मकसूदपुर, विश्वंभरपुर तथा कठघरवां गांवों के सैकड़ों परिवारों का ठिकाना नदी के गर्भ में समा गया। इन परिवारों के लोग बेघर होकर आज भी दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हैं। गत वर्ष भी कटाव से कुचायकोट प्रखंड के दर्जनों घर नदी के गर्भ में समा गए।
समाप्त हो चुका है 13 गांवों का अस्तित्व:
गंडक नदी के भीषण कटाव की जद में आने से जिले के 13 गांवों का अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। इन तेरह गांवों में सदर प्रखंड की नौ, मांझा प्रखंड की दो तथा कुचायकोट प्रखंड के दो गांव शामिल हैं। कटाव पीड़ित सैकड़ों परिवारों के लोग आज भी जदोपुर बाजार के समीप तटबंध के किनारे से लकर गंडक नहर की पटरी पर अपना जीवन बसर कर रहे हैं।
काम नहीं आई सीएम की घोषणा:
जादोपुर-मंगलपुर पुल के उद्घाटन के मौके पर करीब दो साल पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दियारा इलाके में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कटाव पीड़तों के पुनर्वास के संबंध में घोषणा की थी। लेकिन दो साल की लंबी अवधि बीतने के बाद भी इन परिवारों के लोग आज भी पूर्व की तरह से झोपड़ियों में गुजर बसर करने को विवश हैं।