खेती के इस सीजन में सरकारी व्यवस्था किसानों को दगा दे रही है। इस समय किसान रबी फसलों की सिचाई कर रहे हैं। फसल की सिचाई के बाद खेत में यूरिया डाल रहे हैं। लेकिन इस समय नहरें सूखी पड़ी हैँ और सरकारी दुकानों से यूरिया गायब है। किसान निजी पंप से खेतों की सिचाई कर यूरिया के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। सीमावर्ती उत्तर प्रदेश से महंगी कीमत पर किसान यूरिया खरीद कर अपने खेत में डाल रहे हैं। खुले बाजार में भी यूरिया के लिए मनमानी कीमत वसूली जा रही है। खेती के इस सीजन में सरकार व्यवस्था दगा देने से किसानों की परेशानी बढ़ती जा रही है।
रबी फसलों की सिचाई तथा यूरिया के छिड़काव का समय चल रहा है। जिले मे 10 दिसंबर से गेहूं की फसल की सिचाई शुरु हो जाती है । लेकिन इस समय तक नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया है। नहरें सूखी पड़ी हुई हैं। ऐसे मे किसान महंगे दर पर निजी पंपसेट किराए पर लेकर खेतों की सिचाई करने को मजबूर हैं। सिचाई के बाद यूरिया डाली जाती है। लेकिन यूरिया भी सरकार दुकानों से नहीं मिल रहा है। किसानों ने बताया कि किसी भी सरकारी दुकान पर यूरिया उपलब्ध नहीं है । एक जनवरी के बाद यूरिया के उपलब्ध होने की बात दुकानदारों द्वारा बताई जा रही है । खुले बाजार में पांच सौ रुपए प्रति बोरा यूरिया बेची जा रही है। किसानों ने बताया कि यूरिया का सरकारी दस तीन सौ रुपया प्रति बोरा है। सरकारी दुकानों पर यूरिया नहीं मिलने से खुले बाजार में अधिक कीमत देकर यूरिया खरीदनी पड़ रही है। खुले बाजार में भी मुश्किल से यूरिया मिल रही है। ऐसे में किसान सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के बाजारों से यूरिया खरीद करअपने खेत में डालने के लिए मजबूर हैं।
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