उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसा गोपालगंज सोमवार को 48वें वर्ष में प्रवेश कर गया. 47 वर्षों के इतिहास में जिले में विकास के कई कीर्तिमान जहां स्थापित हुए, वहीं संकटों का दंश भी झेलता रहा. वर्ष 1973 में जिले के रूप में गोपालगंज स्थापित हुआ. दो अक्तूबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर ने बतौर जिला उद्घाटन किया.
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शहर पर नजर दौड़ाएं तो स्थापना के समय गोपालगंज शहर नहीं बल्कि एक बाजार था. स्थापना होने के बाद जिले में विकास का कारवां चल पड़ा, जो अनवरत जारी है. यह बात दीगर है कि 90 के दशक में गोपालगंज जिला अपराध और अपराधियों का पर्याय बन गया था. उसी समय गंडक का तांडव शुरू हुआ, जो आज तक अनवरत जारी है. इस बाधा विघ्न के बावजूद गोपालगंज ने विकास का परचम हर क्षेत्र में लहराया है. गांव-गांव में सड़कें बनीं.
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एनएच 28 फोर लेन में बदला. बड़ी लाइन की सुविधा हुई.
शहर हाईटेक होने की ओर अग्रसर है. बात चाहे खेती-किसानी की हो या व्यवसाय की, प्रतिभा की हो या कला की, हर क्षेत्र में गोपालगंज ने प्रदेश और देश स्तर पर अपनी पहचान बनायी है. अंदाजा लगाया जा सकता है कि छपरा और सीवान के बाद गोपालगंज जिला बना, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में इसने दोनों जिलाें को पीछे छोड़ दिया है.
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वर्ष 2016 में गोपालगंज की प्रति व्यक्ति आय 12129 रुपये सालाना थी. चरपहिया और दोपहिया वाहनों की संख्या में अंधाधुंध वृद्धि हुई है. आज जिला 45वें वर्ष में प्रवेश कर गया है. पब्लिक से लेकर पदाधिकारी तक सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत हैं. बात घर-घर में शौचालय बनवाने और हर जगह स्वच्छता की हो रही है. लोग इसे पूरा भी कर रहे हैं. पेट भरने के बाद सुख-समृद्धि के बीच हम न सिर्फ स्वच्छता का संकल्प ले रहे हैं, बल्कि यूं कहा जाये तो विकास के शिखर को छूने के लिए हर कदम दौड़ रहा है.
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ऐसे में रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत पूरी होने के बाद लोगों को अपने जिले से बड़ी उम्मीदें भी हैं. लोगो को अब एम्स जैसा अस्पताल, मेडिकल, इंजीनियरिंग काॅलेज, लंबी दूरी की ट्रेन और मेगा सिटी जैसी सुविधाएं चाहिए, ताकि विकास में जिले की बादशाहत कायम रहे.
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