मांझा बाजार के निवासी विजय बहादुर प्रसाद अब खतरे से बाहर हैं। गोरखपुर के एक अस्पताल में आइसीयू में भर्ती कर इलाज करने के बाद इनकी हालत में काफी सुधार हो गया है। आठ दिन पहले सांस लेने में परेशानी तथा सीने में दर्द होने पर परिजन इन्हें इलाज के लिए सदर अस्पताल लेकर आए थे। तब इन्हें तत्काल आइसीयू में भर्ती करने की जररूत देख चिकित्सक ने इन्हें रेफर कर दिया। अब तक इलाज में 35 हजार रुपया खर्च कर चुके विजय बहादुर प्रसाद के पुत्र श्याम बहादुर प्रसाद बताते हैं कि अगर सदर अस्पताल के आइसीयू की व्यवस्था ठीक रहती तो न इतना रुपया खर्च करना पड़ता और ना ही परेशानी झेलनी पड़ती। वैसे आइसीयू की सुविधा होने के बाद भी बाहर रेफर कर दिए जाने वाले विजयी बहादुर प्रसाद पहले मरीज नहीं हैं। पिछले दो साल से सदर अस्पातल में गंभीर हालत में आने वाले मरीजों को आइसीयू की बदहाल व्यवस्था के कारण रेफर कर देना चिकित्सकों की मजबूरी बन गई है। सरकारी की उपेक्षा की मार झेल रहा सदर अस्पताल का आइसीयू आंसू बहा रहा है।
सरकार ने आठ साल पूर्व सदर अस्पताल में आइसीयू खोलने की पहल की थी। देखते ही देखते करोड़ों रुपये खर्च का नया भवन बनाया गया तथा सभी आवश्यक उपस्कर उपलब्ध कराकर आइसीयू को चालू कर दिया गया। आइसीयू चालू होने के बाद कुछ समय तक मरीजों को इसमें भर्ती किया जाता रहा। लेकिन इसके बाद चिकित्सक तथा प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों को लेकर समस्या आने लगी। आइसीयू के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक के नहीं होने के कारण खुलने के एक साल बाद ही आइसीयू बंद हो गया। हालांकि कुछ चिकित्सक तथा एएनएम को पटना भेज कर प्रशिक्षण देने के बाद फिर से आइसीयू चालू किया गया। लेकिन छह महीने बाद फिर वही समस्या खड़ी हो गई। प्रशिक्षण लेने वाले कुछ चिकित्सक सेवानिवृत हो गए तो कुछ ने नौकरी ही छोड़ दिया। अब पिछले दो साल से आइसीयू बंद पड़ा हुआ है। आइसीयू भवन में अब एंबुलेंस चालक आराम फरमाते हैं। वहीं गंभीर हालत में आने वाले मरीजों को आइसीयू बंद होने के कारण रेफर कर दिया जाता है।
फाइलों में दब गई आइसीयू की दशा सुधारने की पहल:
आइसीयू बंद होने के बाद एक साल पूर्व तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. एके चौधरी ने आइसीयू की दशा सुधारने की पहल की थी। आइसीयू में खराब हो चुके उपस्कर की जगह नए उपस्कर तथा विशेषज्ञ चिकित्सकों को यहां तैनात करने के लिए उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को कई बार पत्र लिखा। लेकिन यह पहल फाइलों में ही दब कर रह गई। स्वास्थ्य विभाग पटना ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। इसी बीच सिविल सर्जन डॉ. एके चौधरी सेवानिवृत्त हो गए।
अभी तक चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है आइसीयू:
अब एक बार फिर से राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। चुनाव प्रचार तेज होने के साथ ही सरकार की उपलब्धि और नाकामियों को गिनाने का सिलसिला अब तेज हो गया है। शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य इन सभी मुद्दों पर राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी एक दूसरे को घेर रहे हैं। लेकिन उपलब्धि और नाकामी को लेकर उठाए जा रहे मुद्दों में अभी तक आइसीयू की बदहाल व्यवस्था शामिल नहीं हो सकी है। पिछले चुनाव में सदर अस्पताल में खोले गए आइसीयू को उपलब्धि के रूप में सत्ता पक्ष के राजनीतिक दल ने उठाया था। लेकिन इस बार अभी तक इस मामले में सभी राजनीतिक दल व प्रत्याशी खामोश हैं।