पुलिस के काम करने का तरीका कितना फ्रेंडली, पारदर्शी और कानून सम्मत है, इसे कोर्ट की इस टिप्पणी से आसानी से समझा जा सकता है। यह टिप्पणी वैसे तो गोपालगंज जिला न्यायालय के प्रभारी मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्रा ने गोपालगंज जिले की पुलिस के लिए की है, लेकिन इसमें जिन बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है, वे बिहार के लगभग सभी थानों में कामन हैं।
पुलिस गलती करती है, तो ऐसे मिलेगा न्याय
इस खबर में हम आपको बिंदुवार 16 गलतियों के बारे में बताएंगे, जो पुलिस खूब करती है। इसके जरिए आपको ये भी पता चलेगा कि अगर पुलिस ऐसी गलती आपके साथ करती है, तो न्यायालय से जरूर न्याय मिलेगा।प्रभारी मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्रा की अदालत ने विगत दिनों आपराधिक मामलों की सुनवाई के दौरान पाया कि गोपालगंज पुलिस कर्तव्यों का पालन नहीं कर रही है।
प्राथमिकी दर्ज करने के साथ ही गड़बड़ी शुरू
प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर, अनुसंधान, आरोप पत्र समर्पित करने एवं मामले के विचारण के दौरान साक्ष्य देने के प्रक्रम में पुलिस के स्तर पर अपने कर्तव्यों के पालन में गंभीर उपेक्षा एवं अनियमितता बरती जा रही है। इससे विधि के प्रविधानों का तथा न्यायिक आदेशों का उल्लंघन हो रहा है। साथ ही विहित समय का पालन नहीं किया जा रहा है।
16 बिंदुओं का पालन करने का निर्देश
गोपालगंज पुलिस को कर्तव्यों का पालन नहीं करते देख प्रभारी सीजेएम की मानवेंद्र मिश्रा की अदालत ने पुलिस अधीक्षक, गोपालगंज आनंद कुमार को 16 बिंदुओं का पालन कराने को सख्त आदेश दिए हैं। आदेश में कहा गया कि 16 बिंदुओं का जिले के सभी थाना प्रभारी, पुलिस निरीक्षक व पुलिस उपाधीक्षक से पालन कराना सुनिश्चित करें।
आगे की ऐसी गलती तो होगी कार्रवाई
न्यायालय ने भविष्य में त्रुटियों की पुनरावृत्ति पाए जाने पर दोषी पुलिस पदाधिकारियों के विरुद्ध विधि सम्मत कार्रवाई की भी चेतावनी दी है। न्यायालय ने आदेश का पत्र भी जारी कर दिया गया है। अब देखना होगा 16 ङ्क्षबदुओं का पालन करने में गोपालगंज पुलिस कितनी गंभीरता दिखाती है। बता दें कि कर्तव्यों का पालन नहीं करने में कई पुलिस पदाधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है।
इन 16 बिंदुओं का पालन कराने का एसपी को आदेश अधिकांश प्राथमिकी में कटिंग अथवा व्हाइटनर का प्रयोग अंकित धारा, घटना का समय व गिरफ्तारी समय के कालम में किया जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। अराजपत्रित पुलिस पदाधिकारी (डीएसपी स्तर से नीचे) द्वारा पूर्ण हस्ताक्षर नहीं किया जा रहा है। न्यायालय से पत्र संव्यवहार अथवा प्राथमिकी, आरोप पत्र, गिरफ्तारी ज्ञापन व जब्ती सूची पर पुलिस पदाधिकारी का पूर्ण हस्ताक्षर होना चाहिए। जब्त किए गए सामान की जब्ती सूची बनाने के तुरंत बाद जब्ती सूची न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए। मूल एवं पूरक दोनों आरोप पत्र में साक्षी के कालम में साक्षियों का नाम व पता अवश्य लिखा जाना चाहिए। निर्दोष अथवा अनुप्रेचित व्यक्ति का नाम अंतिम प्रपत्र के कालम संख्या-12 में पुलिस द्वारा अवश्य अंकित किया जाना चाहिए। सूचक एवं साक्षियों का मोबाइल नंबर विशेषकर चिकित्सक एवं अनुसंधानकर्ता का मोबाइल नंबर अवश्यक अंकित किया जाना चाहिए। किशोर अपचारी को बाल कल्याण पुलिस पदाधिकारी द्वारा सीधे किशोर बोर्ड के समक्ष एसबीआर के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सामान्य एवं गंभीर प्रकृति के वैसे अपराध जिसे कारित करने में वयस्क सम्मिलित नहीं हो अर्थात जो केवल किशोर अपचारी द्वारा किए गए हो। उनमें प्राथमिकी दर्ज न कर पुलिस को जनरल डायरी में दर्ज करनी चाहिए। हथकड़ी अथवा जंजीर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थिति में न्यायालय की पूर्व अनुमति से अथवा ऐसा करने का युक्तियुक्त कारण अंकित करना चाहिए। किंतु किसी भी दशा में किशोर अपचारी के संबंध में हथकड़ी का प्रयोग नहीं करेंगे। आरोप पत्र के कालम 11-तीन में जिसमें अभियुक्त का उम्र लिखना नितांत आवश्यक है, प्राय: पुलिस द्वारा खाली छोड़ दिया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। कुछ मामलों में जख्म प्रतिवेदन व अभियोजन स्वीकृति आदेश अनुसंधानकर्ता द्वारा आरोप पत्र समर्पित करने के बाद भी न्यायालय में समर्पित नहीं किया गया है। ऐसा नहीं होना चाहिए। प्राय: थाना प्रभारी या अनुसंधानकर्ता द्वारा आरोप पत्र या कांड दैनिकी अभियोजन पदाधिकारी द्वारा अग्रसारित नहीं कराया जाता है। ऐसा करा लेने से उनके अनुसंधान में हुए त्रुटि का पता चल जाएगा तथा ससमय उसका निवारण भी हो जाएगा। न्यायालय द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दंंड प्रक्रिया संहिता धारा-156(3) में दिए गए आदेश का प्राय: सभी थाना ससमय अनुपालन नहीं कर रहे हैं। यह एक गंभीर विषय है। सम्मन अथवा वारंट या अन्य न्यायालय के आदेशिकाओं का पालन व तामिला रिपोर्ट आवश्यकता के अनुकूल नहीं प्राप्त हो रहा है। इस कारण मुकदमों की अग्रिम कार्यवाही बाधित हो रही है। अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी संबंधित दिए गए दिशा-निर्देश का पालन अधिकांश मामलों में पुलिस द्वारा नहीं किया जा रहा है। पुलिस निरीक्षक व पुलिस उपाधीक्षक पर्यवेक्षण टिप्पणी निर्देश विधि के प्रविधानों के अनुकूल दें। केस डायरी में इस संबंध में अपना स्पष्ट मंतव्य निर्देश अनुसंधानकर्ता को दें।
पुलिस करे गलती तो कहां जाएं
पुलिस अगर कोई गलती करती है, तो सामान्य तौर पर आपको न्यायालय का रास्ता अख्तियार करना चाहिए। न्यायालय से दोषी पुलिसकर्मी के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा अगर पुलिस आपके अधिकारों को कहीं चोट पहुंचाती है, तो आप राज्य या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से अपनी शिकायत कर सकते हैं। अगर आप कोर्ट में अपनी बात रखने में सक्षम नहीं हैं, तो इसके लिए आपको सरकार की तरफ से वकील भी उपलब्ध कराया जाएगा।
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