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जानिए क्यों बदल गए दो मासूम बच्चों के नाम, परिवार और मज़हब

पेट की आग रिश्तों पर भी भारी पड़ जाती है. इसके आगे किसी का भी बस नहीं चलता. ऐसा ही कुछ हुआ एक मजबूर पिता के साथ, जब पत्नी ने उसका साथ छोड़ दिया. पत्नी के नहीं रहने पर मजबूर पिता ने अपने कलेजे के टुकड़ों को बेहतर परवरिश की खातिर उन्हें अपने से हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दिया. उसकी मजबूरी और हालात को समझे दो मुस्लिम परिवार. यहां ना तो मजहब की दीवार सामने आयी और ना ही सामाजिक बंधन. अगर कुछ सामने आयी, तो सिर्फ इंसानियत.
घटना गोपालगंज जिले के कटेया थाना क्षेत्र के महांथवा गांव की है. महंथवा गांव के विनोद कुमार यादव की शादी पांच साल पूर्व रंभा से हुई थी. तंगहाली में जी रहे विनोद की जिंदगी खुशियों से भरी थी. जी-तोड़ मेहनत की बदौलत वह पत्नी के साथ काफी खुश था. बस कमी थी, तो सिर्फ संतान की. वर्ष 2016 में मुस्कान विनोद की जिंदगी एक खुशी बन कर आयी. एक बार फिर विनोद की जिंदगी में खुशियां आने लगीं, जब विनोद को पता चला कि वह पिता बननेवाला है. रंभा को प्रसव वेदना होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन उसकी हालत बिगड़ने लगी. विनोद के पास जो कुछ भी था, उसने पत्नी की जिंदगी बचाने में लगा दी. लेकिन, होनी को कुछ और ही मंजूर था. उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति राज के रूप में तो हुई, लेकिन उसकी पत्नी एक ऐसी दुनिया छोड़ कर चली गयी.
मुफलिसी में जिंदगी जी रहे विनोद के सामने बच्चों की पेट की आग और उनकी परवरिश एक चुनौती थी. बच्चों की बेहतर परवरिश को लेकर विनोद ने खुद ही शादी करने की जगह बच्चों को वैसी गोद में देने का फैसला किया, जिसकी गोद सुनी थी. इसी दौरान, भोरे थाने के रामपुर चकरवां गांव के दो परिवार सामने आये. मजहब अलग था. लेकिन, मजबूरी सामने थी. विनोद कुमार यादव ने अपने दो मासूम बच्चे और बच्ची को भोरे थाना क्षेत्र के रामपुर चकरवां गांव के वकील अंसारी की पत्नी मुर्शीद खातून को बेटा राज और गांव के इम्तियाज अंसारी की पत्नी मैजूद नेशा को अपनी बच्ची मुस्कान सौंप दी. यह कार्य पंचायत के मुखिया उमेश बैठा, गोपाल भगत, हंसनाथ मांझी, राजेंद्र भगत, राम कुमार प्रसाद, दिनेश चौधरी, राजू सिंह के समक्ष हुआ. बच्चों को सौंपने का एक समझौता पत्र भी बनाया गया है. इसमें विनोद ने लिखा है कि आज के बाद बच्चों से उसका कोई सरोकार नहीं होगा.